जिंदगी छोटी नहीं होती है जनाब
लोग जीना ही देर से शुरू करते हैं
तो क्या हुआ जो दोस्त नहीं मिलते हमसे
मिला तो रब भी नहीं हमे, मगर इबादत तो बंद नहीं की.
हवाओं, बादलों में न जाने क्या साजिशाना बात हुई,
मेरा ही घर मिट्टी का था, वहीं सारी बरसात हुई।।
लफ्ज़ों के दांत नहीं होते, पर ये काट लेते हैं
दीवारें खड़े किये बगैर, बांट देते हैं
मुद्दत हो गई है चुप रहते रहते,
कोई सुनता तो हम भी कुछ कहते
‘पगार’ कुछ नहीं है उनकी
पर काम बड़ी ‘ईमानदारी’ से करते हैं”
यहां हर किसी को दरारों में झांकने की आदत है
दरवाजे खोल दो, कोई पूछने भी नहीं आएगा
मत समझिये कि मैं औरत हूं, नशा है मुझमें
मां भी हूं, बहन भी, बेटी भी, दुआ है मुझमें।
तभी तक पूछे जाओगे, जब तक काम आओगे
चिरागों के जलते ही, बुझा दी जाती हैं “तीलियां!!
हुस्न है, रंग है, खुशबू है, अदा है मुझमे
मैं मुहब्बत हूँ, इबादत हूँ, वफ़ा है मुझमें।
कितनी आसानी से कहते हो कि क्या है मुझमें
ज़ब्त है, सब्र-सदाक़त है, अना है मुझमें।
मैं फ़क़त जिस्म नहीं हूँ कि फ़ना हो जाऊं
आग है , पानी है, मिटटी है, हवा है मुझमें।